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Sunday, February 21, 2021

प्रभू अवतार भक्तजनों पर कृपा बरसाने के लिए लेते हैं :- देवेश



घनश्याम
पटौदी,
मानव निर्माण अभियान के तहत हेलीमंडी पुरानी अनाजमंडी में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन भागवत व्यास पंडित देवेश कृष्ण सच्चिदानंद ने कहा कि भागवत व्यास जी ने पूर्ण ब्रह्म के अवतारों के बारे में बताया कि कहीं पर 24 तो कहीं पर दसावतार की कथा बताई जाती है लेकिन अवतारों की संख्या की गणना संभव नहीं है , क्योंकि हरि अनन्त हरि कथा अनंता ।
जितने भक्त होते हैं उतने ही अवतार होते हैं।
प्रभु के अवतार प्रयोजन पर भी कहा गया कि यहां किसी राक्षस, दानव और अधर्मी का वध करने के लिए ही नहीं  लेते प्रभू अवतार बल्कि अपने भक्तजनों पर कृपा बरसाने के लिए आते हैं। रावण, कंस को मारने के लिए भगवान को अवतार लेने की जरूरत नहीं थी। उन्होंने कहा कि घर द्वार छोड़कर वन में चले जाने ही वैराग्य नहीं होता बल्कि अपने अंतःकरण की शुद्धता इसमें नितांत आवश्यक है। महाभारत की पावन कथा राजन परिक्षत के जन्म का  मधुर प्रसंग का वर्णन किया गया।
जोनल रेलवे समिति सदस्य योगिता धीर का स्वागत करती महिलाएं।

हमारे जीवन में विचारों का आदान प्रदान रोम-रोम से होता है इसके लिए सिर्फ नाक, कान और आखें ही नहीं होती हैं। संत महात्मा की दृष्टि को दिव्य बताते हुए कहा गया कि हम उतना ही देख सकते हैं जितनी दूर तक हमारी दृष्टि जाती है, लेकिन संत जन अनंत तक देखने की दृष्टि रखते हैं।
भागवत कथा के दौरान श्रोतागण

सत्संग से बदल जाती है जीवन की धारा
मानव निर्माण अभियान के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी सुशील गिरी सच्चिदानंद जी महारान ने कहा कि उन्होंने कहा कि संतो का सत्संग करने यह नहीं सोचना चाहिए कि हमें कोई बीमारी नहीं आएगी, हमारा परिवार खुशहाल रहेगा या फिर हमारा व्यापार अच्छा चल जाएगा, यह तो प्रारब्ध होता है जो इस दुनिया में आया है उसे एक दिन जाना ही है जब लाभ होता है तो हानि भी निश्चित होती है। सत्संग तो जीवन की धारा बदल देता है जिसमें आप ज्ञान और भक्ति की धारा में बहने लगते हैं, लेकिन यहां पर भी यदि कई बार लोग सत्संग करते हैं लेकिन उसका मूल नहीं समझ पाते, जिससे जीवन भर सत्संग करने के बाद भी अंत में उनको कुछ भी हासिल नहीं होता है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए योगिता धीर ने कहा कि यह उनके लिए सौभाग्य का विषय है कि भगवत कथा स्वर्ण करने का मौका उन्हें मिला। हम सबको भगवान कृष्ण के बताए पदों पर चलना चाहिए हमें सिर्फ अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए अगर हम फल की इच्छा में पड़ गए तो निसंदेह हम पथभ्रष्ट हो जाएंगे।

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